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पीलीभीत का सिख संहार केस (पीलीभीत)

12 जुलाई 1991 को विभिन्न तीर्थ स्थलों से सिख यात्रियों का जत्था लौट रहा था। यूपी 26-0245 बस नंबर पर 25 तीर्थ यात्री सवार थे। दोपहर लगभग 11 बजे जिले के कछालाघाट पुल के पास पुलिस ने यात्रियों से भरी यह बस रोकी और 12 यात्रियों को उतार लिया। उसके बाद तीन थानाओं की टीम बनाकर पुलिस 4-4 यात्रियों को साथ ले गई। उसके बाद फर्जी एनकाउंटर किया गया। फिर इस मामले में फर्जी एफआईआर दर्ज की गई। जिन यात्रियों को मारा उन पर अवैध असलहों से पुलिस पर जानलेवा हमला करने का आरोप लगाया गया।

पुलिस ने जिन तीर्थ यात्रियों को मारा उन्हें आतंकवादी बताया था। सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट आरएस लोढ़ी ने इस मामले में एक पीआईएल दायर की। कोर्ट ने 15 मई 1992 को सीबीआई जांच के आदेश दिए थे। सीबीआई ने मामले की जांच करके कोर्ट में चार्जशीट दायर की थी। उस समय मामले में 57 पुलिस कर्मियों को दोषी पाया गया था। इनमें से 2 पुलिकर्मियों की मौत हो जाने के कारण 55 पुलिकर्मियों पर मुकदमा चला। कोर्ट में मामला चलने के दौरान 8 पुलिस कर्मियों की मौत हो गई। जिससे 57 दोषियों में से 47 को शुक्रवार को सजा सुनाई गई। कोर्ट ने सभी को आईपीसी की धारा 120 बी, 302, 364, 365, 218, 117 में दोषी पाया है। सीबीआई कोर्ट के विशेष जज लल्लू सिंह ने आरोपी प्रत्येक इंस्पेक्टर पर 11-11 लाख, एसआई पर आठ-आठ लाख और सिपाहियों पर 2.75 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है। किसी फर्जी मुठभेड़ कांड में एक साथ इतने पुलिस वालों को उम्रकैद की सजा देने का यह पहला मामला है।

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