9 फरवरी 2012 को दिल्ली के छावला (Chhawala Gang Rape Case) इलाके से उत्तराखंड की 19 वर्षीय युवती को अगवा कर सामूहिक दुष्कर्म के बाद हत्या कर दी गई थी। युवती गुरुग्राम के साइबर सिटी इलाके में काम करती थी। उस रात वह अपने दफ्तर से कुतुब विहार स्थित अपने घर लौट रही थी। घर के पास से ही कार सवार तीन लोगों ने उसका अपहरण कर लिया था तीन दिन बाद उसका शव हरियाणा के रेवाडी में मिला।
पुलिस ने इस मामले में रवि कुमार, राहुल और विनोद को आरोपी बनाया था। इनके खिलाफ आईपीसी (Indian Penal Code) की धारा 376 (2), 302, 363 और 201 के तहत आरोप दर्ज किए गए थे। दिल्ली पुलिस ने इस केस को रेयरेस्ट ऑफ द रेयर (Rarest of the rare case) केस बताते हुए फांसी की मांग की थी।
साल 2014 में निचली अदालत ने तीनों आरोपियों को दोषी करार देते हुए फांसी की सजा सुनाई थी। आरोपियों की दया याचिका हाईकोर्ट ने खारिज कर दी थी। 7 अप्रैल 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों की सुनवाई करते हुए कहा था कि भावनाओं के आधार पर सजा नही दी जा सकती, सजा तर्क और सबुतों के आधार पर दी जाती है। 7 नवंबर 2022 को मुख्य न्यायधीश यूयू ललित , न्यायमूर्ति एस रविंद्र भट और न्यायमूर्ति बेला त्रिवेदी की पीठ ने तीनों आरोपियों कि बरी कर दिया। पीठ ने कहा कि आरोपियों की गिरफ्तारी, उनकी पहचान, आपत्तिजनक साम्रगियां मिलने, कार की पहचान, नमूने एकत्र करने, चिकित्सकीय और वैज्ञानिक साक्ष्य, डीएनए प्रोफाइलिंग रिपोर्ट, सीडीआर से संबंधित साक्ष्य आदि को अभियोजन पक्ष ने स्पष्ट सबूतों के जरिये साबित नही किया।